शहरों की प्यास बुझाने के लिए राज्य में 13 साल पहले शुरू हुई योजना आज भी अधूरी है। प्रदेश के 24 निकायों में जल आवर्धन योजना का काम खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। हालांकि इतने अंतराल में काम की लागत में डेढ़ से दो गुना इजाफा हो चुका है। ठेकेदार ने काम समय पर पूरा नहीं किया। इसलिए लागत को दाे बार रिवाइज किया गया और हर बार लागत बढ़ाकर काम को पूरा करने की मंजूरी दी गई। लागत बढ़ने के बावजूद संबंधित निकायों में रहने वालों को अपने घरों तक पानी पहुंचने का इंतजार है।
विभाग द्वारा स्थानीय निकायों की मांग और सहमति पर शहरों में जल उपलब्ध कराने के सर्वेक्षण, रूपांकन और क्रियान्वयन पर किया जाता है। लागत का 70 प्रतिशत हिस्सा सरकारी अनुदान और 30 प्रतिशत हिस्सा नगरीय निकायों को कर्ज के रूप में होता है। इनका संचालन और रखरखाव संबंधित नगरीय निकाय द्वारा किया जाता है। इन जिलों में होना था काम
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने बलौदाबाजार के भटगांव के लिए 14 करोड़ 66 लाख दिए। सारंगढ़ को 47.46 करोड़, जांजगीर-चांपा में चांपा को 17.86 करोड़, सारागांव को 3.61 करोड़, कांकेर में चारामा को 19.75 करोड़, कोरबा में कटघोरा को 24.63 करोड़ और बीजापुर को 4.35 करोड़ मंजूर किए गए। काम अधूरा फिर भी ठेकेदार को भुगतान
जांजगीर नैला नगर पालिका क्षेत्र में पानी की समस्या को दूर करने के 35 करोड़ की स्वीकृति दी गई थी। काम पूरा नहीं हुआ लेकिन ठेकेदार को अधिकांश राशि का भुगतान कर दिया गया। जब ठेकेदार ने काम बंद कर दिया तब नगर पालिका ने ठेकेदार को ब्लैक लिस्टेड कर दिया। विधानसभा में भी यह मामला उठ चुका है। कहीं पर पानी की समस्या है तो कहीं जमीन को लेकर इश्यू है। अधूरे पड़े इन कामों में से बहुत से कामों को रिवाइज किया गया है। हमने अधूरे पड़े कामों को प्राथमिकता से पूरा करने का निर्णय लिया है। लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है।
- अरुण साव, उप मुख्यमंत्री व पीएचई मंत्री।